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आदित्य हृदय स्तोत्र पूर्ण रूप से भगवान सूर्य देव को समर्पित है। भगवान सूर्य हिन्दू धर्म के एकमात्र ऐसे देवता है, जो हमें प्रत्यक्ष रूप से साक्षात दर्शन देते है। ऐसा माना जाता है की यदि कोई व्यक्ति प्रतिदन इस पाठ का जाप करता है, तो वह सूर्य भगवान के समान तेज तथा उसे यश की प्राप्ति होती है।
इस पोस्ट में हम आपको Aditya Stotra PDF उपलब्ध करवाने वाले है, साथ ही आदित्य स्तोत्र से सम्बन्धित सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करने वाले है। यदि आप आदित्य ह्रदय स्तोत्र के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो इस पोस्ट को शरू से लेकर अंत तक धयानपूर्वक जरूर पढ़े।
Aditya Hridaya Stotra PDF Details

PDF Title | Aditya Hridaya Stotra Lyrics |
---|---|
Language | Hindi |
Category | Religious |
Total Pages | |
Pdf Size | |
Download Link | Available |
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Aditya Hridaya Stotra Book
Aditya Hridaya Stotra क्या है
आदित्य हृदया स्तोत्र सूर्य देव को समर्पित एक प्रार्थना है। यह प्रार्थना भगवान राम और रावण के महायुद्ध से पहले अगस्तय ऋषि के द्वारा कही गयी थी। ऐसा माना जाता है की यदि आप इस स्तोत्र रोजाना जाप करते है, तो इससे आपको विभिन्न लाभ मिलते है।
यह स्तोत्र आपको भगवान सूर्य के आशीर्वाद से आपके कार्यों और प्रयासों को सफल होने में मदद करता है। इस स्तोत्र के जाप से आपके अंदर की सभी चिंताए और बेचैनी दूर होती है। यह स्तोत्र आपके जीवन पथ में साहस भरने का कार्य करता है।
इसके अतिरिक्त इस स्तोत्र के माध्यम से आप अपने जीवन की बुरी से बुरी परिस्थिति में ऊपर उठ सकते है और गहरे दुःख से बच सकते है। इस प्रकार यदि आप इस स्तोत्र का रोजाना जाप करते है, तो आपके जीवन में खुशहाली और सुख समृद्धि प्राप्ति होती है।
Aditya Haridaya Lyrics in Hindi | आदित्य हृदय स्तोत्र
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥5॥
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: ।
एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: ।
महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: ।
वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽकों शुमान् ॥11॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: ।
अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:।
कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: ।
नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ।
नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् ।
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥
धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥
।।सम्पूर्ण ।।
आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ करने की सही विधि
आदित्य हृदय स्तोत्र की सही पूजा विधि निम्न्लिखित है।
- रविवार को उषाकाल में इसका पाठ करें।
- नित्य सूर्योदय के समय भी इसका पाठ कर सकते है।
- पहले स्नान करें और फिर सूर्य को अर्घ्य दें।
- तत-पश्चात सूर्य के समक्ष इस स्तोत्र का पाठ करें।
- पाठ के पश्चात सूर्य देव का ध्यान करें।
- जो लोग आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करते है, वे लोग रविवार के दिन मांसाहार, मदिरा तथा तेल का प्रयोग न करें।
- संभव हो तो सूर्यास्त के बाद नमक का सेवन भी न करें।
FAQs : Aditya Hridaya Stotra in Hindi PDF
आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ कितनी बार करना चाहिए?
आदित्य ह्रदय स्तोत्र मुख्य रूप से भगवान सूर्य को समर्पित एक प्रार्थना का प्रकार है। यदि कोई भी व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन प्रातःकाल में करता है, तो भगवान सूर्य का आशीर्वाद उस पर सदैव बना रहता है।
आदित्य हृदयम किसने लिखा था?
महान प्रार्थना “आदित्य हृदयम्” ऋषि वाल्मिखी द्वारा रचित रामायण के युद्ध कांड (युद्ध का खंड) के 107वें अध्याय में आती है। जब भगवान राम रावण के साथ निरंतर युद्ध में लगे हुए थे, तो आकाश में एकत्रित देवतागण उनसे ऋषि अगस्त्य से परामर्श लेने का आग्रह करते हैं।
आदित्य क्या होते हैं?
आदित्य से तात्पर्य सूर्य देवता से है।
Aditya Hridaya Stotra PDF कैसे Download करें?
यदि आप आदित्य स्तोत्र Pdf के रूप में मुफ्त में प्राप्त करना चाहते है, तो पोस्ट में दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करके आसानी से डाउनलोड कर सकते है।
Conclusion:-
इस पोस्ट में Aditya Hridaya Stotra PDF मुफ्त में उपलब्ध करवाई गयी है, साथ ही आदित्य स्तोत्र के पाठ की सही के बारे में जानकारी दी गयी है। उम्मीद करते है की Aditya Hrudayam Pdf Download करने में किसी प्रकार समस्या नहीं हुई होगी।
उम्मीद है आपको हमारी यह पोस्ट जरूर पसंद आयी होगी। अगर आपको हमारी इस पोस्ट में उपलब्ध Aditya Stotram Pdf Download करने में कोई भी समस्या आ रही है तो हमे कमेंट करके जरूर बताये।
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