चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय~ Chandra Shekhar Azad Biography in Hindi

चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय:- नमस्कार, दोस्तों आज हम भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले व्यक्ति चंद्रशेखर आजाद के बारे में जानने का प्रयास करते हैं वैसे भारत को स्वतंत्रता दिलाने में कई महान व्यक्तियों का योगदान रहा है किंतु अहम भूमिका चंद्रशेखर आजाद की थी। एक आदिवासी गांव में जन्मे नन्हे बालक ने अपनी 14 वर्ष की छोटी उम्र में असहयोग आंदोलन में भाग लेकर अपना नाम कैसे आजाद किया चलीए आगे देखते हैं। (चंद्रशेखर आजाद बॉयोग्राफी इन हिंदी)

प्रारंभिक जीवन

  • नाम – चंद्रशेखर
  • प्रसिद्ध नाम – चंद्रशेखर आजाद, पंडित जी, शेर-ए-हिंदुस्तान
  • जन्म – 23 जुलाई 1906
  • जन्म स्थान – भाबरा
  • पिता – पंडित सीताराम तिवारी
  • माता – जगरानी
  • मृत्यु – 27 फरवरी 1931

शुरुआती जीवन तथा परिवार

चंद्रशेखर आजाद का जन्म आदिवासी गांव भाबरा में 23 जुलाई 1906 को पंडित सीताराम तिवारी तथा जगरानी के घर हुआ। उनका परिवार (पूर्वज) उत्तर प्रदेश के बदर गांव में रहता था परंतु प्रचंड अकाल के दौरान उन्हें मध्य प्रदेश के भाबरा गांव में आकर रहना पड़ा यही चंद्रशेखर जी का जन्म हुआ। भाबरा गांव आदिवासी क्षेत्र था अतः चंद्रशेखर जी का बचपन भील साथियों के संग बीता अपने साथियों के साथ चंद्रशेखर जी ने भी धनुष बाण चलाना कम उम्र में ही निपुणता से सीख लिया। (आजाद का परिवार)

असहयोग आंदोलन में हिस्सा

चंद्रशेखर जी काशी में संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करने की आज्ञा लेकर घर से निकल पड़े । उसी समय महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन अपने शुरुआती दौर में था। चंद्रशेखर जी गांधीजी से बेहद प्रभावित थे और वे देश के लिए कुछ करना भी चाहते थे तो अपनी छोटी सी उम्र में ही स्वयं को आंदोलन से जोड़ लिया। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तब उनकी उम्र मात्र 14 वर्ष की थी। (चंद्रशेखर आजाद का असहयोग आंदोलन में क्या योगदान रहा)

जब बालक चंद्रशेखर को न्यायाधीश के सामने लाया गया तो न्यायाधीश ने उनसे नाम पूछा इस पर चंद्रशेखर ने अपना नाम “आजाद” बताया तथा अपने पिता का नाम “स्वतंत्रता” व अपना घर “जेलखाना” एक बुलंद आवाज में बताया। (चंद्रशेखर का नाम आजाद)

छोटी उम्र का होने के कारण उन्हें सिर्फ 15 कोड़े मारने की सजा मिली प्रत्येक कोड़े की चोट पर “महात्मा गांधी की जयकार” तथा “वंदे मातरम” का तेज आवाज में उद्घोष किया। बालक चंद्रशेखर के जीवन की इस घटना ने उन्हें सार्वजनिक रूप से आजाद बना दिया इसके बाद वे चंद्रशेखर आजाद के नाम से पहचाने जाने लगे।

राम प्रसाद बिस्मिल ला से मुलाकात

गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन का 1922 में स्थगित कर देने के पश्चात चंद्रशेखर आजाद बेहद निराश हो गए उन्होंने यह मन ही मन सोच लिया कि कैसे भी अपने देश को आजादी दिलानी है। और इसमें मदद की एक युवा क्रांतिकारी ने उसने आजाद को रामप्रसाद बिस्मिल्ला से मिलवाया। (चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय हिन्दी में)

रामप्रसाद बिस्मिल्ला हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक क्रांतिकारी दल के संस्थापक थे वे दोनों एक दूसरे से मिलकर बेहद प्रभावित हुए। आजाद की निष्ठा तथा समर्पण की भावना को पहचान कर उन्हें बिस्मिल्ला जी ने अपनी संस्था का सक्रिय सदस्य बना लिया। संस्था के लिए धन एकत्रित करने का कार्य आजाद तथा उनके साथियों का था वे ज्यादातर धन अंग्रेजी सरकार से लूट कर ही प्राप्त करते थे।

सिद्धांत के पक्के – आजाद

एक बार जब क्रांतिकारि एक घर में घुसकर धन लूटने लगे तभी उनके एक साथी की नजर वहां की एक लड़की पर पड़ी। उसने वासना में अंधे होकर उस लड़की से अभद्रता का व्यवहार करने की कोशिश की। आजाद ने उसे ऐसा करने से रोका परंतु उसने आजाद को अनसुना कर दिया इस पर आजाद को बेहद गुस्सा आया। वह अपने सिद्धांतों के पक्के थे और किसी भी महिला के साथ ऐसा व्यवहार बर्दाश्त नहीं कर सकते तो उन्होंने अपने साथी पर गोली चलाई और उस लड़की से माफी मांगी इसी के साथ बिना धन लुटे ही वहां से चल दिए। (आजाद की जीवनी)

भगत सिंह से भेंट

काकोरी कांड के चलते 1925 में राम प्रसाद बिस्मिला, अशफाक उल्ला खान ,राजेंद्र लाहिड़ी तथा अन्य क्रांतिकारी को फांसी की सजा सुनाई गई आजाद अकेले ही इनसे बचने में सफल रहे। इस घटना के बाद में इस संस्था का पुनर्गठन कर आगे बढ़ाया। इसके पश्चात आजाद भगत सिंह से मिले और दोनों ने साथ मिलकर अंग्रेजी सरकार को भारत से हटाने का तथा स्वतंत्रता पाने का हर संभव प्रयास किया (भगत सिंह तथा आजाद ने मिलकर किए आजादी के लिए संघर्ष)

इसी दौर के चलते हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन का नाम बदला गया और इसे बदलकर नया नाम हिन्दुस्तान सोशलिस्टिक रिपब्लिक एसोसिएशन रखा गया।

आजाद की एक घटना यह भी

आजाद काकोरी काण्ड से फरार होकर गाज़ीपुर में एक साधु के यहां चेला बन कर रहने लगे। वे भेष बदलकर उस मरणासन्न साधु के चेले बनकर धन लूटने आए थे। उन्होंने सोचा साधु की मृत्यु के बाद मठ की संपूर्ण संपत्ति उनकी हो जाएगी परंतु यहां तो सब उल्टा हो गया वो साधु जो मरणासन्न अवस्था में था वह हट्टा-कट्टा होने लगा यह देख आजाद वहां से भाग गए। (आजाद के जीवन की घटनाएं)

आजाद – झांसी में

आजाद ने कुछ समय के लिए अपना गढ़ झांसी को बनाया यही से लगभग 15 किलोमीटर दूर जंगल में वे अपने साथियों के संग निशानेबाजी का अभ्यास करते। आजाद की निशानेबाजी अचूक होने के कारण वे अपने साथियों को प्रशिक्षण देते थे। पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के यहां बच्चों को अध्यापन का कार्य छद्म नाम से करते तथा पूरे धीमापुर गांव में अपने छद्म नाम से ही प्रसिद्ध हुए। झांसी में रहते हुए आजाद ने अपने साथियों को प्रशिक्षण दिए ,अध्यापन का कार्य किया, तथा इसी के साथ गाड़ी चलाना भी सीख लिया।

अंतिम समय तथा आत्म बलिदान

आजाद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने फरवरी 1931 में सीतापुर जेल गए तब उन्होंने आजाद को जवाहरलाल नेहरू से इलाहाबाद जाकर मिलने के लिए कहा। आजाद विद्यार्थी की बात मान कर आनंद भवन नेहरू जी से मिलने गए परंतु नेहरू जी ने आजाद को सुनने से भी मना कर दिया। इस पर आजाद को बेहद गुस्सा आया और वे अपने साथी सुखदेव राज को लेकर वहां से एल्फ्रेड पार्क पहुंच गए। (चंद्रशेखर आजाद की जीवनी)

किसी ने पुलिस को खबर कर दी और पुलिस ने उन्हें एल्फ्रेड पार्क में ही घेर लिया आजाद ने बचाव के लिए अपनी बंदूक निकाली और गोलियां चलानी शुरू कर दी। किसी तरह सुखदेव को वहां से भगाने में वे कामयाब रहे किंतु वे स्वयं नहीं निकल पाए जब आजाद के पास एक अंतिम गोली बची तब उन्होंने बंदूक अपने सर पर रख कर आत्म बलिदान कर दिया।

आजाद ने कसम ले रखी थी कि वह मरते दम तक आजाद रहेंगे और वास्तविक में वे आजाद रहें 27 फरवरी 1931 को अपनी कसम को पूरी करते हुए उन्होंने आत्म बलिदान कर दिया। (चंद्रशेखर आजाद का आत्म बलिदान) उन्होंने आत्म बलिदान कर दिया परंतु पुलिस उनके डर से उनके पास तक नहीं आई पुलिस ने आजाद पर कई गोलियां चलाई और जब वे निश्चिंत हो गए कि अब आजाद नहीं रहे तब ही उनके पास गए ।

प्रमुख तथ्य

✓• आजाद ने जिस बंदूक से आत्म बलिदान किया वह आज भी इलाहाबाद के म्यूजियम में रखी हुई है।

✓• आजाद के शहीद होने के बाद यह आंदोलन और तेज हो गया और कई नौजवान युवक इस आंदोलन का हिस्सा बन गए।

✓• आजाद के शहीद होने के 16 वर्ष पश्चात भारत को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिल गई।

✓• भारत को आजादी मिलने के बाद एल्फ्रेड पार्क का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद पार्क रख दिया गया।

✓• भारत को आजादी मिलने के बाद मध्य प्रदेश के धीमालपुरा गांव का नाम बदलकर आजादपुरा कर दिया गया। (चंद्रशेखर आजाद 5 लाइन में)

दोस्तों आज हमने हिंदुस्तान को स्वतंत्रता दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले चंद्रशेखर आजाद के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की। क्रांतिकारी तथा धन लूटने के बावजूद भी अपने सिद्धांतों के पक्के थे यह भी जाना। चंद्रशेखर आजाद को आजाद और पंडित नाम से जाना जाता था इसी के साथ उन्हें शेर-ए-हिंदुस्तान के नाम से भी जाना जाता था।

Tushar Shrimali Jivani jano के लिए Content लिखते हैं। इन्हें इतिहास और लोगों की जीवनी (Biography) जानने का शौक हैं। इसलिए लोगों की जीवनी से जुड़ी जानकारी यहाँ शेयर करते हैं।

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