जमनालाल बजाज का जीवन परिचय। Jamnalal Bajaj Biography in Hindi

नमस्कार, दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, मानवशास्त्री तथा उद्योगपति जमनालाल बजाज के बारे में जो कि महात्मा गांधी के बहुत करीब थे उनके अनुयाई थे तथा गांधीजी भी उन्हें अपने पुत्र की तरह ही मानते थे। जी हां , हम उन्हीं जमनालाल बजाज की बात करने वाले हैं जिनकी याद में “जमनालाल बजाज पुरस्कार” उन लोगों को दिया जाता है जो कि सामाजिक क्षेत्रों में सराहनीय कार्य कर अपना नाम बनाते हैं।

तो चलिए कौन थे जमनालाल बजाज, क्यों उनके नाम पर इतना बड़ा पुरस्कार दिया जाता है, और कैसे उन्होंने अपना नाम इतना बड़ा बनाया कि लोगों के दिलों में वह आज भी जिंदा है, यह सारी बातें विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं। जमनालाल बजाज के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारा यह लेख पूरा अवश्य पढ़िएगा।

जमनालाल बजाज का जीवन परिचय (सामान्य)

  • नाम – जमनालाल बजाज
  • प्रसिद्ध नाम – गांधी का पांचवा बेटा
  • जन्म – 4 नवंबर 1889
  • जन्म स्थान – जयपुर , राजस्थान
  • माता – बिरधीबाई
  • पिता – कनीराम
  • पत्नी – जानकी देवी
  • मृत्यु – 11 फरवरी 1942
  • मृत्यु स्थान – वर्धा , महाराष्ट्र

प्रारंभिक परिचय

जमुनालाल बजाज का जन्म 4 नवंबर 1889 को राजस्थान में काशी का वास नामक छोटे से गांव में हुआ वे गरीब मारवाड़ी कनीराम के घर जन्मे थे। उनकी माता का नाम बिरधीबाई तथा पिता का नाम कनीराम था।

वर्धा के एक सेठ बछराज ने उन्हें 5 वर्ष की आयु में ही गोद ले लिया सेठ बच्छराज सीकर के रहने वाले थे और उनके पूर्वज लगभग सवा 100 वर्ष पूर्व नागपुर चले गए थे। ऐश्वर्य एवं विलासिता पूर्ण वातावरण बालक जमनालाल को दूषित ना कर पाया क्योंकि वे तो बचपन से ही अध्यात्म की ओर झुके हुए थे।

बचपन में शादी

जब जमनालाल बजाज 10 वर्ष के थे तभी उनकी सगाई जानकी से कर दी गई। तीन वर्ष पश्चात जमनालाल जब 13 वर्ष के हुए तथा जानकी 9 वर्ष की हुई तब उन दोनों का वर्धा में ही धूमधाम से विवाह करवा दिया गया। (जमनालाल बजाज की शादी)

जमनालाल बजाज ने स्वदेशी एवं खादी को चुना तथा अपने बेशकीमती वस्तुओं की होली जला दी। उन्होंने अपने बच्चों को किसी फैशनेबल पब्लिक विद्यालय में ना भेजकर विनोबा कि सत्याग्रह आश्रम में अपनी इच्छा से दाखिला करा दिया। जमनालाल बजाज का कहना था कि उनके बच्चे तथा पत्नी को कोई सुख सुविधा या पदवी उनकी स्वयं की योग्यता को देखकर मिले, ना कि बजाज के पुत्र होने के कारण मिले।

छोटी उम्र में महान सोच

जब जमनालाल 17 वर्ष के थे उस समय की बात है तब पूरे परिवार को बड़े विवाह समारोह में जाना था उनके पिता तथा परिवार के अन्य सदस्य अपनी धन-संपत्ति का दिखावा करना चाहते थे। इसी दिखावे के लिए जमनालाल को का हीरे-पन्नों का हार पहन कर समारोह में जाने को कहा गया परंतु इस दिखावे तथा प्रदर्शन से उन्होंने साफ इनकार कर दिया। इस बात को लेकर बजाज और उनके पिता के बीच बहस हो गई और मात्र 17 वर्ष की उम्र में वे घर छोड़कर भाग गए।

कुछ वक्त बाद एक स्टांप पेपर पर उन्होंने कानूनी मजमून बनाकर अपने पिता को भेजा जिसमें अन्य बातों के अलावा विशेष रूप से इस बात का जिक्र किया गया था कि उन्हें पैसों से कोई लोग या लालच नहीं है। उन्होंने यह भी लिखा कि वह तो धन की परवाह भी नहीं करते और घर से जाते वक्त अपने पहने हुए वस्त्रों के अलावा कुछ भी लेकर नहीं गए हैं।

उन्होंने अपने पिता को सलाह भी दी कि वे अपना धन दान कर पुण्य के कार्य में लगाए एवं वो भी यश या दिखावे के लिए नहीं अपितु अपनी खुशी से । तथा बजाज अपना हिस्सा अथवा भागीदारी मांगने कभी नहीं आएंगे इसीलिए उन्होंने यह दस्तावेज भेजे हैं। (जमनालाल बजाज बायोग्राफी इन हिंदी)

दान तथा पुण्य के कार्य

कुछ समय के बाद जमनालाल को किसी तरह से ढूंढ निकाला गया और घर वापसी के लिए मनाने के प्रयत्न किए गए। उनके पिता की मृत्यु के पश्चात भी उन्हें यह याद था कि जिस धन-संपत्ति का वे परित्याग कर चुके हैं उस पर उनका अब कोई अधिकार किसी रूप से नहीं है।

अतः उन्होंने संपूर्ण संपत्ति जो कि उन्हें विरासत में मिली थी उसका मूल्यांकन करवाया एवं उसमें अब तक (उस दिन तक) का चक्रवृद्धि ब्याज जोड़ा और उतनी धन संपत्ति का दान कर दिया। इसी तरह के दान उन्होंने कई बार किए। पूर्ण जीवन में स्वयं को ट्रस्ट के ट्रस्टी की तरह मानते रहे और संपत्ति का इस्तेमाल स्वयं के लिए कभी नहीं किया। (जमनालाल बजाज के दान)

सच्चे गुरु की खोज

कुछ समय के बाद जमनालाल युवावस्था में पहुंच गए अब वे किसी सच्चे कर्मयोगी गुरु की खोज में तथा आध्यात्मिक खोजयात्रा आरंभ कर चुके थे। कर्मयोगी गुरु की खोज में सबसे पहले वे “मदन मोहन मालवीय” से मिले इसी दौर में कुछ वक्त उन्होंने “रविंद्र नाथ टैगोर” के साथ भी बिताया। अन्य कई गुरु तथा साधुओं से मिले परंतु अब तक उन्हें अपने सच्चे और मन को शांति पहुंचाने वाले गुरु नहीं मिले।

जब बाल गंगाधर तिलक ने 1906 मराठी पत्रिका “केसरी” का नागपुर से हिंदी संस्करण निकालने का ईस्तीहार दिया तब जमनालाल ने अपने जेब खर्च से मिलने वाले प्रतिदिन के एक-एक रुपए से सो रुपए जमा कर दिए। (जमनालाल बजाज की जीवनी) जमनालाल तिलक को अपना गुरु नहीं मान पाए बस उस देश सेवा के दान से अत्यंत प्रसन्नता प्राप्त की।

यह दौर चलता रहा और जमनालाल को महात्मा गांधी के चर्चे सुनने में आए। गांधी जी द्वारा दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह किया जा रहा था उसकी खबर सुनकर जमनालाल बेहद प्रभावित हुए। भारत वापसी कर गांधीजी ने 1915 में साबरमती में अपना आश्रम बना वहीं रहने लगे।

जमनालाल भी कुछ समय तक वहां रहते और गांधी के व्यक्तित्व तथा कार्यप्रणाली को समझने का प्रयास करते रहते थे। (जमनालाल बजाज के सच्चे गुरु) जमनालाल को अपना सच्चा गुरु मिल गया था उन्होंने गांधी जी को अपना गुरु बना कर अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया।

गांधी जी का पांचवा बेटा

गांधी जी को अपना गुरु बनाने के बाद वे गांधी के थोड़े निकट आ गए थे। अब वे गांधी जी से निवेदन करने लगे कि वह अपना आश्रम वर्धा में बनाए उन्होंने कहा कि वर्धा में अपनी ओर से हर तरह का सहयोग आपको मैं दूंगा परंतु गांधीजी किसी से ज्यादा सहयोग ना लेकर अपनी गति से चलना चाहते थे।

जमनालाल के बहुत कहने पर गांधी जी ने अपने स्थान पर विनोबा को 1921 में वर्धा भेज दिया। विनोबा बजाज परिवार के कुलगुरु बनकर वही बस गए और गांधी के कहे अनुसार ‘सत्याग्रह आश्रम’ को संभालने लगे। (जमनालाल बजाज गांधी के पांचवें पुत्र कैसे बने)

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में 1920 के दौरान महात्मा गांधी को उन्होंने ने एक अजीब सा प्रस्ताव दिया। उन्होंने गांधी जी से निवेदन किया कि वे गांधी का ‘पांचवा बेटा’ बनना चाहते हैं एवं गांधी को अपने पिता के रूप में ‘गोद लेना’ चाहते हैं। गांधी जी को इस अजीब से प्रस्ताव पर आश्चर्य हुआ किंतु कुछ वक्त बाद उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। (गांधी के पांचवें बेटे का जीवन परिचय)

जमनालाल गांधी के पांचवें बेटे बन चुके थे अब उनका मेल मिलाप होता रहता और कई बार वे चिट्ठियों से भी अपनी बातें किया करते थे। एक बार गांधी जी ने जल्दबाजी में ‘चिरंजीव जमनालाल’ के स्थान पर ‘भाई जमनालाल’ लिख दिया। इसको पढ़कर वे बेहद दुखी हुए और एक लंबी चिट्ठी लिखकर गांधी जी को भेज दी। इस बात पर गांधी जी को सारी बात विस्तार से जमनालाल जी को समझानी पड़ी।

विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार

जमनालाल को समाज सुधारक के रूप में भी देखा गया था। उन्होंने सामाजिक सुधार का आरंभ अपने स्वयं के विदेशी वस्त्रों को त्याग कर किया। उन्होंने असहयोग आंदोलन के दौरान विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार में अपने सारे बेशकीमती रेशमी वस्त्रों को शहर के बीचो बीच डालकर उनकी होली जला दी और इसमें अपना पूर्ण रूप से योगदान दिया।

इस योगदान में उनकी पत्नी ने भी उनका साथ दिया। जानकी देवी ने अपने सारे बेशकीमती वस्त्रों का परित्याग कर “आजीवन खादी पहनने” का व्रत ले लिया।

त्याग तथा दान

अंग्रेज सरकार द्वारा जमनालाल को दी गई “राय बहादुर” की पदवी को उन्होंने त्याग दिया। उन्होंने अपनी ‘रिवाल्वर व बंदूक’ जमा करवा कर अपना लाइसेंस वापस ले लिया। अपने सारे मुकदमे वापस ले लिए और अदालतों का भी बहिष्कार कर दिया। आजादी की लड़ाई के लिए जिन वकीलों ने भी अपनी वकालत छोड़ दी थी उनके निर्वाह के लिए ₹100000 का उन्होंने कांग्रेस को दान दिया। (जमनालाल बजाज द्वारा किए गए बहिष्कार)

सनातन लोगों के घोर विरोध के बाद भी विनोबा के नेतृत्व में वर्धा के लक्ष्मी नारायण मंदिर में 1928 में दलित लोगों को प्रवेश करवाने में अविश्वसनीय सफलता प्राप्त कर ली। इसी के साथ दलितों के लिए अपने घर के प्रांगण , खेत व कुएं भी खोल दिए थे।

प्रजामंडल की स्थापना

असहयोग आंदोलन के चलते जमनालाल ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध तीखा भाषण दिया एवं सत्याग्रहीयों का नेतृत्व किया इस पर उन्हें तथा विनोबा को 18 जून 1921 को गिरफ्तार कर लिया गया। विनोबा को महीने भर के लिए सजा मिली इसके बाद छोड़ दिया गया परंतु जमनालाल को डेढ़ साल का सश्रम कारावास तथा ₹3000 का जुर्माना चुकाना पड़ा। (जमनालाल बजाज को जेल)

जमुनालाल जी के अथाह प्रयत्नों के कारण 1931 में “जयपुर राज्य प्रजामंडल” की स्थापना हुई। जयपुर राज्य ने 30 मार्च 1938 को एक आदेश निकाला जिसके अनुसार सरकार की आज्ञा के बिना वहां कोई भी सार्वजनिक संस्था की स्थापना नहीं कर सकता है इसका मुख्य उद्देश्य प्रजामंडल के कार्यों तथा गतिविधियों को समाप्त करना था। (जमनालाल बजाज द्वारा प्रजामंडल की स्थापना)

जयपुर राज्य में फैले अकाल का ब्यौरा करने तथा कुछ मदद करने 30 दिसंबर 1938 को वे सवाई माधोपुर स्टेशन पर खड़े थे तभी वहां इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस एफ. एस. आ गए और उन्हें एक आदेश दिया। इस आदेश के मुताबिक ‘जमनालाल के रियासत में प्रवेश करने से वहां की शांति भंग हो सकती है’। इसका साफ अर्थ था कि जमनालाल वहां ना जाए।

इससे प्रजामंडल की आंखें खुल गई और जमनालाल जी के नेतृत्व में “सत्याग्रह” किया गया। अंत में रियासत को अपनी गलती माननी पड़ी और आदेश वापस लेना पड़ा। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जमनालाल जी रियासत की प्रजा के संरक्षक थे तथा वे जीवन के अंत समय तक अपना फर्ज निभाते रहे।

अन्य योगदान

‘अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ’ की स्थापना 1935 में बजाज के द्वारा की गई इस संघ के लिए उन्होंने अपना बेहद बड़ा बगीचा दे दिया जिसका नाम गांधी जी ने ‘मगनवाड़ी’ रखा था। ‘मगनवाड़ी’ नाम स्वर्गीय मगनलाल गांधी के नाम से रखा गया था। (जमनालाल बजाज के योगदान)

‘अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन’ जो कि 1936 में नागपुर में आयोजित किया गया इसके बाद उन्होंने हिंदी प्रचार के लिए वर्धा के पश्चिम व पूर्व के प्रांत में ‘राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ की स्थापना की। कुछ समय पश्चात मद्रास के ‘हिंदी साहित्य सम्मेलन’ के अध्यक्ष के रूप में चुने गए। उन्होंने राष्ट्रभाषा आंदोलन को व्यवस्थित रूप देने के लिए इस पद का उपयोग किया।

गौ सेवा तथा शादी काका

जमनालाल बजाज ने अपने लिए देश के पशुधन की सुरक्षा का कार्य चुना तथा उसका प्रतीक गाय को बनाया। अपने इस कार्य को लगनता से एकाग्रचित्त होकर करते रहते तथा अपना सबसे बड़ा कार्य गो सेवा को ही मान लिया। गाय को जिंदा रखने के लिए अपने प्राण तक गवाने को तत्पर थे व इसी कार्य को करते हुए उन्होंने अपने प्राण भी गंवा दिए। (जमनालाल बजाज द्वारा गौ सेवा के कार्य)

वे अपने सभी कार्यकर्ता को आर्थिक सहायता के साथ ही उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का प्रबंध भी करवाते थे, इसी के साथ उनकी बीमारी में उनका इलाज करवाते और शादियां भी कम से कम खर्च में वे ही करवाते थे। इन कारणों से गांधी जी उन्हें प्यार से “शादी काका” बुलाते थे। (जमनालाल बजाज की जीवनी)

देहान्त

व्यक्तिगत सत्याग्रह में 1941 में जेल से रिहा होने के बाद बजाज आनंदमई मां से मिलने और अपने कुछ महत्वपूर्ण बातों की संतुष्टि के उपाय जानने गांधी जी की सहमति लेकर देहरादून गए। देहरादून से वर्धा आने के बाद मस्तिष्क की नस फट जाने से उनका देहांत 11 फरवरी 1942 को हो गया। (जमनालाल बजाज की मृत्यु)

उनके देहांत के पश्चात उनकी पत्नी ने खुद को देश की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। जानकी देवी भूदान आंदोलन में भी विनोबा के साथ रहे और अपने पति के कार्यों को आगे बढ़ाती रही ।

मुख्य बिंदु

✓• जमनालाल बजाज का जन्म 4 नवंबर 1889 को जयपुर , राजस्थान में हुआ।

✓• “गांधीजी के पांचवें बेटे” के रूप में उन्हें पहचाना जाता है यही उनका प्रसिद्ध नाम भी है ।

✓• बजाज ने अपनी छोटी उम्र में ही देश के प्रति अपने प्रेम को दिखाते हुए विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी को अपनाया और आजीवन खादी पहनने का प्रण ले लिया ।

✓• बजाज ने अपने सच्चे गुरु की खोज में अपना जी जान लगा दिया और अंत में गांधी जी को अपना गुरु बना लिया। (जमनालाल बजाज का जीवन परिचय 10 लाइन में)

✓• ‘जयपुर राज्य प्रजामंडल’ , ‘अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ’ तथा ‘राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ आदि की स्थापना जमनालाल बजाज द्वारा की गई है ।

✓• उनको गांधीजी प्यार से “शादी काका” बुलाते थे।

✓• सामाजिक कार्यों में अपना योगदान देने वाले लोगों को “जमनालाल बजाज पुरस्कार” से सम्मानित किया जाता है।

✓•बजाज को कई बड़े पदों के लिए प्रस्ताव दिए गए परंतु उन्हें किसी बड़े पद पर कार्य नहीं करना था अतः उन्होंने सारे प्रस्ताव ठुकरा दिए थे।

✓• बजाज की मृत्यु 11 फरवरी 1942 को वर्धा में मस्तिष्क की नस के फट जाने से हुई थी।

तो दोस्तों, आज हमने जमनालाल बजाज के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त की है उनके दान-पुण्य, योगदान तथा आंदोलन आदि के बारे में विस्तार से जाना है। अपनी छोटी उम्र में उन्होंने कई बड़े कार्य किए और उनके सभी कार्यों में उनकी जीवनसंगिनी जानकी देवी ने उनका साथ दिया तथा उनकी मृत्यु के बाद उनके अधूरे कार्यों को पूरा किया।

गांधी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांत को जमनालाल बजाज ने वास्तविक जीवन में जी कर बताया। वे जातिवाद के विरुद्ध डटकर खडे रहे तथा उन्होंने समाज को एक नई दिशा दिखाई और जीवनभर उसी पर चलते रहे। सामाजिक कार्यों में इतने सुंदर एवं सराहनीय कार्यों को करने के लिए जमनालाल जी की स्मृति में “जमनालाल बजाज पुरस्कार” की स्थापना की गई

तथा समाज के लिए उत्कृष्ट कार्य करने वालों को यह पुरस्कार दिया जाता है। (जमनालाल बजाज पुरस्कार क्यों दिया जाता है) आपको यह लेख कैसा लगा कमेंट कर जरूर बताएं और शेयर अवश्य करें। धन्यवाद।

Tushar Shrimali Jivani jano के लिए Content लिखते हैं। इन्हें इतिहास और लोगों की जीवनी (Biography) जानने का शौक हैं। इसलिए लोगों की जीवनी से जुड़ी जानकारी यहाँ शेयर करते हैं।

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