मीराबाई का जीवन परिचय – नमस्कार , दोस्तों आज हम बात करने वाले है कृष्ण भक्ति में मधुरता भरी काव्य रचयिता व गायिका मीराबाई के बारे में। जी हां , हम उन्हीं मीराबाई की बात करने वाले हैं जिन्होंने कृष्ण भक्ति में लीन होकर जहर का प्याला तक पी लिया परंतु कभी कृष्ण की भक्ति नहीं छोड़ी। अपने बचपन से अंत समय तक उन्होंने कृष्ण की पूजा की तथा अंत में उन्ही में समा गई।
जब सांसारिक दुखों से उनका मन भर गया तथा सहनशक्ति खत्म हो गई तब उन्होंने अपना सर्वस्व गिरधर को सौंप दिया और भगवत भजन में सारी लोग लज्जा छोड़कर भक्ति में नाचने लगी एवं अंत में द्वारका में गिरधर की मूर्ति में समा गई। तो चलिए कृष्ण भक्त मीराबाई के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं। (कृष्ण भक्त मीरा की जीवनी)
जीवन परिचय (सामान्य)
मीरा बाई का सामान्य जीवन परिचय / मीराबाई का बचपन का नाम क्या था
- नाम – मीरा बाई
- बचपन का नाम – पेमल
- मीरा बाई का जन्म कब हुआ – 1498 ई. (विक्रम संवत् 1555)
- जन्म स्थान – मेड़ता (राजस्थान)
- पिता – रतन सिंह
- पति – भोजराज
- मृत्यु – 1546 ई. ( विक्रम संवत् 1603) के आसपास
प्रारंभिक जीवन परिचय /मीराबाई जीवनी इन हिंदी
मीराबाई का जन्म 1498 ई. हिंदी पंचांग के अनुसार विक्रम संवत् 1555 को राजस्थान में मेड़ता के पास कुकड़ी गांव में हुआ। इनके पिता रतन सिंह जी तथा दादा राव दुदा जी थे व राठौड़ राजा राव जोधा जी इनके परदादा थे। इनका बचपन का नाम पेमल था यह बचपन से ही गिरधर की भक्ति करती व भजन गाया करती तथा अपने साथ गिरधर की मूर्ति सदैव रखती थी।
गिरधर की मूर्ति को उठाना, स्नान कराना, भोजन कराना, पूजन कराना, सुलाना आदि की व्यवस्था मीरा बाई स्वयं किया करती थी, यह मूर्ति उन्हें किसी साधु से प्राप्त हुई थी। (मीराबाई का जीवन परिचय)
ये अपनी कृष्ण भक्ति में लीन रहती और खुश रहती परंतु उनकी बाल्यावस्था में ही उनकी माता का देहांत हो गया। कम उम्र में मां का साया हट गया और पिता अपने काम में व्यस्त होने से उनके पास ज्यादा वक्त नहीं रह पाते। छोटी उम्र में इतने कष्ट को झेलना पड़ा तो उनके दादा राव दुदा जी ने इन्हें अपने पास मेड़ता रहने के लिए बूला दिया।
मेड़ता में इन्हें अपने दादा के स्नेह के साथ धर्म-कर्म में भी बहुत ज्ञान प्राप्त हुआ। और इसी धार्मिकता ने मीराबाई को गिरधर के ज्यादा निकट ला दिया। (मीराबाई का बचपन) कुछ वक्त बाद जब राव दूदा की मृत्यु हो गई तब दुदा के बड़े बेटे राव वीरमदेव ने इनको अपने साथ रखकर लालन-पालन किया।
मीराबाई का विवाह तथा वैधव्यता / मीरा बाई की मृत्यु कैसे हुई
उन्होंने एक बार उनकी माता से बातों-बातों में यह जाना कि उनका दूल्हा गिरधर ही है, माता ने तो परिहास में कहा किंतु इन्होंने इसी को सत्य मान लिया और गिरधर की ओर अधिक झुकाव ले लिया।
वे अपना सर्वस्व उन्हीं को समझ बैठी और गिरधर को अपना दूल्हा समझ अटूट प्रेम करने लगी। वे तो अपना सर्वस्व गिरधर को समझ उन्हीं से अटूट प्रेम करती थी परंतु सांसारिक नियमों के अनुसार उनके पिता ने उनका विवाह करवाया।
मेड़ता के प्रसिद्ध महाराणा सांगा के बड़े बेटे कुंवर भोजराज के संग विक्रम संवत् 1573 को उनका विवाह हुआ। (मीराबाई का विवाह) विवाह के बाद वे मेड़ता में अपना सुखी जीवन जीने लगी लेकिन यह खुशियां ज्यादा वक्त तक नहीं टिक पाई कुछ समय बाद ही उनके पति भोजराज का देहांत हो गया और वे विधवा हो गई।
अपने पति की मृत्यु के बाद उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला और गिरधर की उपासना कर अपना समय बिताने लगी। कुछ समय बाद ही उन पर दुखों का पहाड़ टूट गया उनके श्वसुर तथा पिता का भी निधन हो गया इस दुख ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया।
अब वे ज्यादा समय कृष्ण भक्ति तथा भजन में गुजारने लगी , वे भगवत भजन तथा सत्संग में सारी लोक लज्जा को त्याग कर गिरधर प्रेमवश में भजन गाने तथा नाचने लगी। (मीरा की कृष्ण भक्ति)
मीरा पर हुए अत्याचार/ मीरा बाई का जीवन परिचय
मीरा गिरधर की भक्ति में लीन होकर भजन गाने लगी और प्रेम में वशीभूत होकर सारी लोग लज्जा त्याग नाचने लगी। उनका मंदिरों में यू नाचना मेवाड़ के ऊंचे राजवंश की मर्यादा के विरुद्ध जान पडने लगा।
इस बात से परेशान होकर महाराणा सांगा के दूसरे बेटे रतन सिंह और छोटे भाई विक्रमजीत सिंह ने मीरा पर कई प्रकार के अत्याचार करना शुरू कर दिया, (मीरा पर हुए अत्याचार) सिर्फ़ अत्याचार ही नहीं उन्होंने उन्हें समाप्त कर मौत के घाट उतारने तक के भी कई प्रयास किए।
उन्होंने उन्हें सांपों से डसवाने का प्रयास भी किया परंतु गिरधर के आशीर्वाद और चमत्कार से सांप शालिग्राम बन गए । (मीरा ने विष का प्याला पी लिया) जब राणा ने उन्हें एक बार विष का प्याला पीने को दिया तब उन्होंने गिरधर का भजन करते हुए वह प्याला पी लिया और यह विष का प्याला गिरधर की कृपा से अमृत में परिवर्तित हो गया।
मीराबाई का अन्तिम समय/ मीरा बाई की मृत्यु कब हुई
नाना प्रकार के अत्याचारों से परेशान होकर वे मेड़ता आ गई। मेड़ता में मीरा के चाचा वीरमदेवजी राज करते थे तो वे प्रोत्साहित होकर तीर्थ यात्रा को निकल पड़ी। तीर्थयात्रा में वे गिरधर के कई मंदिरों से होते हुए वृंदावन गई फिर वहां से द्वारिका पहुंची। (मीराबाई की मृत्यु) द्वारिका में रणछोड़ भगवान की भक्ति में लीन रहने लगी और अपना समय वही गुजारने लगी।
सन् 1546 (विक्रम संवत 1603) में द्वारिका में रणछोड़ की मूर्ति में समा गई और दुनिया से नाता तोड़ गई। दुनिया से तो उन्होंने अपने आप को शुरू से ही अलग रख के अपना सर्वस्व गिरधर को सौंप दिया लेकिन उन्होंने अपने प्राण 1546 के आसपास त्याग दिए और अपने शरीर को त्याग रनछोड़ में समा गई।
भाव तथा कला पक्ष
■ भाव पक्ष-: कृष्ण की भक्ति प्रद शाखा की सर्वगुण संपन्न कवित्री मीराबाई है, इनकी सारी काव्य रचनाएं, कविताएं , भजन एकमात्र गिरधर नागर से ही संबंधित है।
भावपक्ष के मुख्य पद
- प्रार्थना व विनय संबंधित पद
- प्रेम से संबंधित पद
- गिरधर के सौंदर्य वर्णन संबंधित पद
- जीवन से संबंधित पद
- रहस्यवादी भावना के पद
- मीरा बाई किस काल की कवयत्री थी
- कला पक्ष-: कृष्ण की भक्त मीराबाई भक्ति काल की प्रसिद्ध कवित्री है।
-:भाषा शैली-: वे राजस्थानी , पंजाबी , भोजपुरी , तथा गुजराती शब्दों को मिलाकर ब्रज भाषा में मधुर गीत गाने वाली है। (कृष्ण भक्त मीरा का जीवन परिचय)
रस : अलंकार : छंद – इनके छंद गेय पद में अनेक राग रांगनियों से परिपूर्ण है।
रस की बात करें तो श्रृंगार रस (संयोग , वियोग) का मुख्य रूप से वर्णन किया है और साथ ही शांत रस का भी प्रयोग किया गया है। अलंकार में विशेष रूप से रूपक , उपमा , व दुष्टांत आदि का प्रयोग भी किया गया है। (मीरा के छंद)
काव्य की बोलियां
इनके पदों की भाषा कहीं शुद्ध ब्रज है तो कहीं राजस्थानी व गुजराती है, कभी-कभी पंजाबी का प्रयोग कर काव्य की रचना की गई है। मुख्य रूप से ब्रजभाषा के पुट में 4 बोलियां आती है जो कि इस प्रकार है -:
- गुजराती
- पंजाबी
- राजस्थानी
- ब्रजभाषा। (मीराबाई की काव्य रचनाए)
मीरा बाई की रचनाएं ,साहित्य व पदावली
श्री कृष्ण के विभिन्न पदों की रचना इनके द्वारा ही की गई है , उन्होंने प्रेम भरे कई पद गाए हैं। इनकी रचनाओं में प्रमुख-:
- नरसी जी का मायरा,
- गीत गोविंद कि टीका,
- राग सीरठ के पद,
- रामगोविंद आदि है।
हिंदी काव्य साहित्य में मीरा का प्रमुख स्थान है , प्रेम की पीड़ा उनकी काव्य रचनाओं में स्पष्ट झलकती है। (मीरा की रचनाएं) उनकी तरह प्रेम पीड़ा को किसी ने महसूस नहीं किया और कोई ऐसी रचनाएं दोबारा नहीं कर पाया है।
इनके गीतों को “मीराबाई की पदावली” ग्रंथ में संकलित किया गया है, इसमें प्रमुख खंड निम्न है -:
- रुकमणी मंगल,
- नरसी जी का मायरा,
- फुटकर पद,
- मीरा की गरबी,
- मलार राग,
- नरसिंह मेडता की हुंडी,
- चरित सत्यभामा जी नुं रूसंन (मीरा के पद)
मीराबाई के बारे में अलग-अलग तथ्य
★ उदयपुर राज्य के इतिहास में पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने लिखा है कि “भोजराज का विवाह मीराबाई के संग विक्रम संवत् 1573 में हुआ”।
★ “मीरा का विवाह राणा के अनुज से” नागरीदास द्वारा बताया गया है।
★ “एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ़ राजस्थान” में कर्नल टॉड ने “राणा कुंभा से मीरा का विवाह” बताया है।
★ विलियम क्रूक ने सबसे पहले बताया है कि “असलियत में मीरा ने राणा कुंभा से विवाह नहीं किया बल्कि सांगा के पुत्र भोजराज से मीराबाई का विवाह हुआ था”। (मीराबाई के पति)
★ “इनका जन्म विक्रम संवत 1503 मैं चौकड़ी गांव में हुआ व उदयपुर के कुमार भोजराज से उनका विवाह हुआ” यह बात अपने इतिहास में पंडित रामचंद्र शुक्ल ने लिखी है।
★ “इनका जन्म 1498 ई. (विक्रम संवत 1555) में हुआ” यह डॉक्टर गणपति चंद्रगुप्त ने बताया है।
★ प्रियादास ने भक्तमाल की टीका “भक्ति रस बोधिनी” में विक्रम संवत 1769 में लिखा है कि “मीराबाई की जन्मभूमि मेड़ता है”।
मीरा बाई से सम्बंधित प्रमुख तथ्य
मीराबाई का जन्म कब हुआ
✓• इनका जन्म 1498 ई. (विक्रम संवत 1555) को हुआ व मृत्यु 1546 ईस्वी (विक्रम संवत 1603) के आसपास मानी जाती है।
✓• इनके बचपन का नाम पेमल है व इनकी कर्म भूमि वृंदावन है।
✓• ये भक्ति काल की कवित्री है जो कि मुख्य रूप से कृष्ण भक्ति के गीतों को गाती है। (मीराबाई की जीवन परिचय 10 लाइन में)
✓• इनके शिक्षक व गुरु संत रविदास है तथा यह मान्यता है कि जीव गोस्वामी से इन्होंने दीक्षा ली थी।
✓• इन्हें डॉ नगेंद्र ने “संप्रदाय निरपेक्ष भक्त कवित्री” कहा है।
✓• ये कृष्ण के रूप की दीवानी है व इनकी भक्ति माधुरी भाव की है।
✓• ये अपना गुरु रैदास को मानती हैं।
✓• मीरा कृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं तथा उन्हें अपना पति भी मानती हैं। (मीरा की बॉयोग्राफी इन हिंदी)
FAQ Related To Meera Bai Biography
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मीरा का जन्म कब हुआ?
इनका जन्म 1498 ई. (विक्रम संवत् 1555) के आसपास मेड़ता में माना जाता है।
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मीराबाई के बचपन का नाम क्या है?
मीरा बाई के बचपन का नाम पेमल था।
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मीरा के पिता कौन हैं?
मीरा बाई के पिता का नाम रतनसिंह था।
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मीरा के पति कोन है?
मीरा बाई के पति कुंवर भोजराज है।
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मीराबाई कौनसे काल की कवित्री है?
मीरा बाई भक्तिकाल की कवियत्री थी।
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मीरा बाई की प्रसिद्द रचना कौनसी है?
मीरा बाई की सबसे प्रसिद्द रचना ‘नरसी जी रो मायरो’ है।
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मीरा बाई के गुरु कौन थे?
मीरा बाई ने श्री कृष्ण भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है। संत रैदास तथा रविदास जी उनके गुरु थे।
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मीरा किसे अपना पति मानती थी और क्यों?
मीरा बाई श्री कृष्ण को अपना पति मानती थी क्योकि वह उनकी भक्ति में पूरी तरह डूबी हुई थी।
Conclusion –
तो दोस्तों आज हमने भक्तिकाल की प्रसिद्ध कवित्री मीराबाई के बारे में विस्तार से जाना है। मीराबाई कृष्ण की भक्त हैं और उन्हें अपना पति भी मानती थी। हमे उनसे अटूट प्रेम भक्ति की सीख लेनी चाहिए और अपने आराध्य को अंतिम समय तक याद करते रहना चाहिए। मीरा को कई बार कृष्ण ने बचाया यहा तक की विष का प्याला पीने के बाद भी वे जिंदा रही।
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