Swami Vivekananda Book PDF Download Free [2023]

आज की इस पोस्ट में हम आपको Swami Vivekananda Book Pdf उपलब्ध करवाने वाले है, जिसे आप पोस्ट में दिए गए Download Link की सहायता से आसानी से Download कर सकते है।

दोस्तों अगर आप भी स्वामी विवेकानंद बुक्स के बारे में सर्च कर रहे हो तो आप एकदम सही पोस्ट पर आए हो क्योकि इस पोस्ट में Swami Vivekananda Book PDF in Hindi पीडीऍफ़ उपलब्ध कराई है।

दोस्तों स्वामी विवेकानंद के ने अनेक पुस्तको की रचना की है तो आज की इस पोस्ट में स्वामी विवेकानंद की सभी महत्वपूर्ण बुक की पीडीऍफ़ उपलब्ध करा रहे है। स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्ध पुस्तकों में सबसे ज्यादा लोगो के द्वारा पसंद की जाने वाली बुक ‘कर्म योग’ है,

इसके अलावा अन्य बुक जिनको ही बहुत सारे लोगो के द्वारा पसंद किया गया है उन बुक के नाम इस प्रकार है – राज योग, ज्ञान योग, भक्ति योग और मेरे गुरु है। तो आज की पोस्ट काफी महत्वपूर्ण होने वाली है।

Swami Vivekananda Book PDF Link

PDF NamePDF SizeNo. of PagesDownload Link
कर्मयोग 4.4 MB 149 Get PDF
ज्ञानयोग4.6 MB 356 Get PDF
धर्मतत्व 3.7 MB 122 Get PDF
प्रेम योग4.4 MB 186 Get PDF
भारतीय नारी 1.9 MB 114 Get PDF
मेरा जीवन तथा ध्येय2.4 MB 45 Get PDF
जाति, संस्कृति और समाजवादGet PDF
वर्तमान भारत1.19 MB 72 Get PDF
मेरी समर – नीतिGet PDF
जाग्रति का सन्देशGet PDF
Note - Swami Vivekananda Books Pdf Free Download in Hindi में करने के लिए ऊपर दिए गए Get Pdf बटन पर क्लिक करे। 

Swami Vivekananda Books Pdf in Hindi

Swami Vivekananda Book PDF

दोस्तों स्वामी विवेकानंद ने अपनी पुस्तक कर्म योग में कहा है की इंसान अपने जीवन में जो कुछ भी है वह स्वयं की वजह से है और उसका उत्तरदायी भी स्वयं है। जो हम होना चाहते है, यह हमारी होने की शक्ति है। मनुष्य का वर्तमान स्वरूप उसके पूर्व कार्यो का परिणाम होता है। इसलिए हम आज के कर्मो से अपना अच्छा भविष्य बना सकते है।

इसलिए मनुष्य को हमेशा कर्म करते रहना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। कर्म शब्द संस्कृत की “कृ= करना” धातु से बना है। जोकुछ भी किया जाता है, कर्म है। कर्मों का फल भी इसका-प्रयुक्त अर्थ होता है।

दर्शन-शास्त्र में इसका अर्थ कमी-कभी उस परिणाम से होता है जिसके कि हमारे पूर्वकर्म कारण हैं । परंतु कर्म-योग में हमें उसी कर्म से वास्ता है जिसका अर्थ काम है ।

सत्य का ज्ञान मनुष्य जाति का उचित ध्येय है, इसी आदर्श को प्राच्य दर्शन हमारे सामने रखते हैं। मनुष्य का ध्येय सुख नहीं, ज्ञान है । सांसारिक सुख और आनन्द का अंत हो जाता है।

मनुष्य की यह भूल है जो वह समझता है कि ध्येय सुख है; संसार की सभी विपत्तियों की जड़ यह अंध-विश्वास है कि सुखही वह आदर्श है जिसे पाने के लिये प्रयत्नपर रहना चाहिये !

मनुष्य इस बात को जनता है की वह सुख के के लिए नहीं बल्कि ज्ञान के लिए आगे बढ़ रहा है। मनुष्य के लिए सुख और दुःख शिक्षक है और वह उनसे ही शिक्षा लेना सीखता है। सुख और दुख उसकी आत्मा के सामने से गुजरते हुए उसपर अपनी छाया छोड़ जाते हैं।

इन भाव-चित्रों के सामूहिक परिणाम का ही नाम मनुष्य का “चरित्र” है। किसी का भी चरित्र लीजिये ; वह उसकी भावनाओं, उसकी मानसिक प्रवृत्तियों की समष्टि है।

उस चरित्र के निर्माण में सुख और दुख का समान भाग है। सुख और दुख समान रूप से चरित्र निर्मित करते हैं और कहीं-कहीं दुख सुख से अधिक शिक्षा देता है।

संसार के बड़े-बड़े चरित्रों का अध्ययन करने पर यह देखा जा सकता है कि दुख ने सुख से अधिक शिक्षा दी ; धन से अधिक निर्धनता ने उन्हें महता का पाठ पढ़ाया ; प्रशंसा से नहीं, प्रहार सहकर उनकी अन्तर्ज्योति का स्फुरण हुआ।

Vivekananda Books in Hindi

यह ज्ञान भी मनुष्य में ही है; ज्ञान कभी बाहर से नहीं ध्याता ; वह सब भीतर है। जो कुछ मनुष्य “जानता” है, वह मनोवैज्ञानिक शब्दावली में ठीक-ठीक खोज निकालता लेता है तथा मनुष्य की आत्मा अनंत ज्ञान की खान है, जो मनुष्य अपने जीवन में जानता है, वह सही में उसी पर एक पर्दा हटने की खोज होती है।

हम लोग कहते हैं, न्यूटन ने आकर्षण-शक्ति को ढूँढ निकाला 1 क्या आकर्षण शक्ति किसी कोने में बैठी उसका रास्ता देख रही थी? वह उसी के मस्तिष्क में थी, समय आया तब उसे उसका ज्ञान हुआ।

संसार को जितना भी ज्ञान मिला है, इसी मस्तिष्क से। तुम्हारा मस्तिष्क ही विश्व का सोम, अछोर पुस्तकालय है। परन्तु प्रत्येक समय तुम्हारे अध्ययन का विषय तुम्हारा मन ही है। सेव का गिरना न्यूटन के लिए उद्दीपक कारणस्वरूप हुआ और उसने अपने मन का अध्ययन किया।

उसने अपने मन में पूर्व से स्थित भाव-श्रृंखला की कड़ियों को एक बार फिर से व्यवस्थित किया तथा उनमें एक नयी कड़ी का आविष्कार किया। उसी को हम गुरुत्वाकर्षण का नियम कहते हैं।

यह न तो सेव में था और न पृथ्वी के केन्द्र में स्थित किसी अन्य वस्तु में ही अतएव समस्त ज्ञान, चाहे वह व्यावहारिक हो अथवा पारमार्थिक, मनुष्य के मन में ही निहित है।

बहुधा यह प्रकाशित न होकर ढका रहता है। और जब आावरण धीरे-धीरे हटता जाता है, तो हम कहते है कि ‘हमें ज्ञान हो रहा है’। ज्यों-ज्यों इस आविष्करण की क्रिया बढ़ती जाती हैं, त्यों-त्यों हमारे ज्ञान की वृद्धि होती जाती है।

जिस मनुष्य पर से यह आवरण उठता जा रहा है, वह अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक ज्ञानी है, और जिस मनुष्य पर यह आवरण सह-पर-तह पड़ा है, वह अज्ञानी है।

जिस मनुष्य पर से यह आवरण बिलकुल चला जाता है, वह सर्वज्ञ पुरुष कहलाता है। अतीत में कितने ही सर्वश पुरुष हो चुके हैं और मेरा विश्वास है। कि अब भी बहुत से होंगे तथा आगामी युगों में भी ऐसे असस्य पुरुष जन्म लेंगे।

जिस प्रकार एक चकमक पत्थर के टुकड़े में अग्नि निहित रहती है, उसी प्रकार मनुष्य के मन में ज्ञान रहता है। उद्दीपक कारण घर्षणस्वरूप ही उस ज्ञानाग्नि को प्रकाशित कर देता है।

ठीक ऐसा ही हमारे समस्त भावों और कार्यों के सम्बन्ध में भी है। यदि हम शान्त होकर स्वयं का अध्ययन करे, तो प्रतीत होगा कि हमारा नाना दुःख विपा हमारी शुभकामनाएँ एवं शाप, स्तुति और निन्दा में सब हमारे मन के ऊपर है। इससे आगे आप बुक में पढ़ सकते हो।

निष्कर्ष

इस पोस्ट में Swami Vivekananda Book Pdf मुफ्त में उपलब्ध करवाई गयी है। उम्मीद करते है की Swami Vivekananda Books Pdf in Hindi करने में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं हुई होगी।

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