नमस्कार, दोस्तों आज हम बात करने जा रहे हैं भारत के वीर, साहसी, पराक्रमी योद्धा जिसे मारवाड़ का भावी रक्षक तथा राठौड़ों की शान कहा जाता है। हम बात करने वाले हैं हिंदू धर्म तथा मारवाड़ (जोधपुर) के रक्षक “दुर्गादास राठौड़” की।
दुर्गादास राठौर के साहस वीरता और निडरता को आज भी राठौड लोगों द्वारा याद किया जाता है और सिर्फ राठौड़ ही नहीं पूरा मारवाड़ तथा भारत इनके साहस की गाथा गाता है तो चलिए वीर, पराक्रमी, बहादुर, साहसी, मारवाड़ के रक्षक दुर्गादास राठौड़ के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं। (दुर्गादास राठौड़ की जीवनी)
दुर्गादास राठौड़ का जीवन परिचय (सामान्य)
- नाम – दुर्गादास राठौड़
- जन्म – 13 अगस्त 1638
- जन्म स्थान – सालवा, जोधपुर
- पिता – आसकरण
- माता – नेतकंवर
- मृत्यु – 22 नवंबर 1718
- मृत्यु स्थान – शिप्रा नदी के किनारे, उज्जैन
बचपन
साहसी, वीर दुर्गादास राठौड़ का जन्म आसकरण के घर 13 अगस्त 1638 को सालवा, जोधपुर में हुआ। दुर्गादास राठौड़ अपने पिता से दूर सालवा में अपनी माता नेतकंवर के साथ रहते थे। नेतकंवर ने दुर्गादास को धार्मिक तथा देश भक्ति के संस्कार दिए और उनका पालन-पोषण किया।
दुर्गादास के पिता आसकरण मारवाड़ के महाराजा जसवंत सिंह की सेना के वीर सेनापति थे अतः वह जसवंत सिंह के साथ जोधपुर में ही रहते थे। (दुर्गादास राठौड़ का बचपन)
महाराजा का बुलावा
एक समय की बात है जब दुर्गादास नन्हे ही थे और अपने खेतों की रखवाली कर रहे थे तभी कुछ चरवाहे अपने ऊंटो को खेतों में चराने लगे यह देख बालक दुर्गादास ने उन्हें रोका और पशु चराने से मना भी किया। पशु के चरने से खेतों की फसल खराब हो रही थी परंतु चरवाहों ने बालक की बात अनसुनी कर दी और मारवाड़ तथा महाराज के बारे में अपशब्द कहने लगे। यह सुनकर बालक दुर्गादास गुस्से पर काबू न रख पाए और उन्हें मृत्युदंड दे डाला। (वीर दुर्गादास राठौड़ का जीवन परिचय)
जब यह सारी बातें महाराजा जसवंत सिंह को पता चली तो उन्होंने उस वीर बालक को अपने दरबार में बुलाया और सब बात पूछी। महाराजा के आदेश पर वीर बालक दरबार में उपस्थित हुआ और निडरता से अपनी बात कह डाली। महाराजा इस बालक को दंड देने वाले थे परंतु बालक की निडरता और वीरता देख उसे उपहार में एक कृपाण दी तथा अपनी सेना में शामिल कर दिया।
महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु तथा पुत्र जन्म
इस समय दिल्ली के सम्राट औरंगजेब थे तथा औरंगजेब चाहता था कि पूर्ण अजमेर पर उसका आधिपत्य हो जो कि जसवंत सिंह के जीवित रहते हुए असंभव था। औरंगजेब में 1678 में षड़यंत्र पूर्वक राजा जसवंत सिंह को पठान विद्रोहियों से लड़ने के लिए अफगानिस्तान भेजा तथा इस षड्यंत्र में औरंगजेब कामयाब हुआ और नवंबर-दिसंबर 1678 में महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु हो गई। (महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु)
महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु हो गई और उसका कोई जीवित पुत्र भी नहीं था परंतु जसवंत सिंह की मृत्यु के वक्त उनकी दो रानियां गर्भवती थी। दोनों रानियों ने एक-एक पुत्र को जन्म दिया। रानी नरूकी के पुत्र का नाम “रणथंबन” था जिनकी जन्म के कुछ समय बाद ही मृत्यु हो गई । तथा रानी जादम के पुत्र का नाम “अजीत सिंह” था ।
दिल्ली सम्राट औरंगजेब ने जसवंत सिंह की मृत्यु के पश्चात जोधपुर पर अपना आधिपत्य जमा दिया एवं शाही हाकिम को गद्दी पर बैठा दिया। (दुर्गादास राठौड़ बायोग्राफी इन हिंदी)
अजित सिंह का राजा बनना
औरंगजेब जोधपुर पर आधिपत्य जमा देता है और अजीत सिंह को मारने के षड्यंत्र करने लगता है। औरंगजेब पूर्ण रुप से अजमेर पर शासन करना चाहता था और अजीत सिंह को मारना चाहता था परंतु वीर दुर्गादास औरंगजेब के हर षड्यंत्र को विफल कर अजीत सिंह को बचा लेता है।
एक बार औरंगज़ेब अजीत सिंह को आमंत्रण भेजता है और मारवाड़ का राजा घोषित करने को भी कहता है परंतु दुर्गादास समझ जाते कि यह भी कोई षड्यंत्र ही है और अजीत सिंह को पुनः बचा लेते हैं।
दुर्गादास बाल्यावस्था से युवावस्था तक अजीत सिंह को बचाते हैं और बाद में उन्हें अजमेर का राजभार सौंप कर अपना वादा निभाते हैं। (दुर्गादास की महानता)
मुगलों का नुकसान
औरंगजेब ने अपने पुत्र अकबर को युद्ध करने तथा दुर्गादास को सबक सिखाने भेजा परंतु वीर दुर्गादास ने इसी बीच औरंगजेब के पुत्र को दिल्ली की गद्दी का लालच देकर अपने साथ मिला लिया परंतु कुछ समय पश्चात अकबर ने उनका साथ छोड़ दिया।
दुर्गादास ने मुगलों की सेना पर कई बार छापामार गुरिल्ला नीति से युद्ध किए और उन्हें लूटा इससे औरंगज़ेब की सेना तथा राजकोष दोनों को भारी नुकसान हुआ।
दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु
अपना संपूर्ण जीवन दुर्गादास राठौड़ ने मारवाड़ पर न्योछावर कर लिया तथा उन्होंने मारवाड़ में कोई बड़ी पदवी हासिल ना करते हुए मारवाड़ की रक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया। (वीर दुर्गादास का बलिदान)
अंत में वीर दुर्गादास ने महाराजा जसवंत सिंह को दिया हुआ वादा निभाया और अजीत सिंह को राजगद्दी सौंपकर मारवाड़ को छोड़कर महाकाल की नगरी उज्जैन चले गए वीर दुर्गादास ने संयास ले लिया और अपने अंत समय तक शिप्रा नदी के किनारे अवंतिका नगरी में महाकाल की भक्ति करने लगे। (दुर्गादास राठौड़ का सन्यास) यहीं पर उनका 22 नवंबर 1718 को निधन हो गया।
मुख्य बिंदु
✓• उज्जैन में जिस जगह पर वीर दुर्गादास राठौड़ का अंतिम संस्कार किया गया वहीं अति सुंदर नक्काशी कर छतरी बनाई गई है । (5 लाइन में दुर्गादास राठौड़ का जीवन परिचय)
✓• दुर्गादास ने सनातन धर्म की रक्षा की तथा इस्लामीकरण का पूर्ण रूप से विरोध किया।
✓• वीर दुर्गादास राठौड़ के सिक्के एवं पोस्ट स्टांप भारत सरकार द्वारा जारी किए गए।
✓• दुर्गादास राठौड़ का जन्म 13 अगस्त 1638 को सालवा, जोधपुर में हुआ।
✓• दुर्गादास राठौर की मृत्यु 22 नवंबर 1718 को शिप्रा नदी के किनारे अवंतिका नगरी में उज्जैन में हुई।
तो दोस्तों आज हमने मारवाड़ (जोधपुर) के वीर, साहसी, पराक्रमी, योद्धा दुर्गादास राठौड़ के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास किया है। वीर दुर्गादास राठौड़ देशभक्ति और वीरता के लिए पहचाने जाते है। यह वीर योद्धा मर कर भी सदैव अमर रहा। आपको यह लेख कैसा लगा कमेंट करके जरूर बताएं और लाइक शेयर जरुर करें।