Dukh Bhanjani Sahib Path Hindi PDF | Download Free

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दुःख भंजनी भजन मुख्यतः पंजाबियों की प्रसिद्ध प्रार्थना है। इस प्रार्थना की रचना गुरु अर्जन देव के द्वारा की गयी है, जहां दुःख भंजनी का शाब्दिक अर्थ दुःख का नाश करने से है। इस प्रार्थना के पाठ को सुबह और शाम दोनों समय किया जाता है। इस प्रार्थना के जरिये किसी भी दुःख या कठिनाई का अनुभव किया जा सकता है।

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Dukh Bhanjani Sahib Path Hindi PDF Overview

Dukh Bhanjani Sahib Path Hindi PDF
PDF Title Dukh Bhanjani Sahib Path Hindi PDF
Language Hindi
Category Religious & Spirituality
Total Pages
PDF Size
Download Link Available
PDF Source BeingHindi.in
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Dukh Bhanjani Sahib Path in Hindi | दुख भंजनी साहिब पाठ

गउड़ी महला ५ मांझ ॥
दुख भंजनु तेरा नामु जी दुख भंजनु तेरा नामु ॥ आठ पहर आराधीऐ पूरन सतिगुर ग्यानु ॥ १ ॥ रहाउ ॥
जितु घटि वसै पारब्रहमु सोयी सुहावा थाउ ॥ जम कंकरु नेड़ि न आवयी रसना हरि गुन गाउ ॥ १ ॥
सेवा सुरति न जाणिया ना जापै आराधि ॥ ओट तेरी जगजीवना मेरे ठाकुर अगम अगाधि ॥ २ ॥
भए क्रिपाल गुसाईआ नठे सोग संताप ॥ तती वाउ न लगयी सतिगुरि रखे आपि ॥ ३ ॥
गुरु नारायनु दयु गुरु गुरु सचा सिरजणहारु ॥ गुरि तुठै सभ किछु पायआ जन नानक सद बलेहार ॥ ४ ॥ २ ॥ १७० ॥
गउड़ी महला ५ ॥
सूके हरे कीए खिन माहे ॥ अंमृत द्रिसटि संचि जीवाए ॥ १ ॥
काटे कसट पूरे गुरदेव ॥ सेवक कउ दीनी अपुनी सेव ॥ १ ॥ रहाउ ॥
मिटि गई चिंत पुनी मन आसा ॥ करी दया सतिगुरि गुणतासा ॥ २ ॥
दुख नाठे सुख आइ समाए ॥ ढील न परी जा गुरि फुरमाए ॥ ३ ॥
इछ पुनी पूरे गुर मिले ॥ नानक ते जन सुफल फले ॥ ४ ॥ ५८ ॥ १२७ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ताप गए पायी प्रभि सांति ॥ सीतल भए कीनी प्रभ दाति ॥ १ ॥
प्रभ किरपा ते भए सुहेले ॥ जनम जनम के बिछुरे मेले ॥ १ ॥ रहाउ ॥
सिमरत सिमरत प्रभ का नाउ ॥ सगल रोग का बिनस्या थाउ ॥ २ ॥सहजि सुभाय बोलै हरि बानी ॥ आठ पहर प्रभ सिमरहु प्रानी ॥ ३ ॥
दूखु दरदु जमु नेड़ि न आवै ॥ कहु नानक जो हरि गुन गावै ॥ ४ ॥ ५੯ ॥ १२८ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
जिसु सिमरत दूखु सभु जाय ॥ नामु रतनु वसै मनि आइ ॥ १ ॥
जपि मन मेरे गोविन्द की बानी ॥ साधू जन रामु रसन वखानी ॥ १ ॥ रहाउ ॥
इकसु बिनु नाही दूजा कोइ ॥ जा की द्रिसटि सदा सुखु होइ ॥ २ ॥
साजनु मीतु सखा करि एकु ॥ हरि हरि अखर मन मह लेखु ॥ ३ ॥
रवि रहआ सरबत सुआमी ॥ गुन गावै नानकु अंतरजामी ॥ ४ ॥ ६२ ॥ १३१ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
कोटि बिघन हिरे खिन माह ॥ हरि हरि कथा साधसंगि सुनाह ॥ १ ॥
पीवत राम रसु अंमृत गुन जासु ॥ जपि हरि चरन मिटी खुधि तासु ॥ १ ॥ रहाउ ॥
सरब कल्यान सुख सहज निधान ॥ जा कै रिदै वसह भगवान ॥ २ ॥
अउखध मंत्र तंत सभि छारु ॥ करणैहारु रिदे मह धारु ॥ ३ ॥
तजि सभि भरम भज्यो पारब्रहमु ॥ कहु नानक अटल इहु धरमु ॥ ४ ॥ ८० ॥ १४੯ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
सांति भई गुर गोबिदि पायी ॥ ताप पाप बिनसे मेरे भायी ॥ १ ॥ रहाउ ॥
राम नामु नित रसन बखान ॥ बिनसे रोग भए कल्यान ॥ १ ॥
पारब्रहम गुन अगम बीचार ॥ साधू संगमि है निसतार ॥ २ ॥
निरमल गुन गावहु नित नीत ॥ गई ब्याधि उबरे जन मीत ॥ ३ ॥
मन बच क्रम प्रभु अपना ध्यायी ॥ नानक दास तेरी सरणायी ॥ ४ ॥ १०२ ॥ १७१ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
नेत्र प्रगासु किया गुरदेव ॥ भरम गए पूरन भई सेव ॥ १ ॥ रहाउ ॥
सीतला ते रख्या बेहारी ॥ पारब्रहम प्रभ किरपा धारी ॥ १ ॥
नानक नामु जपै सो जीवै ॥ साधसंगि हरि अंमृतु पीवै ॥ २ ॥ १०३ ॥ १७२ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
थिरु घरि बैसहु हरि जन प्यारे ॥ सतिगुरि तुमरे काज सवारे ॥ १ ॥ रहाउ ॥
दुसट दूत परमेसरि मारे ॥ जन की पैज रखी करतारे ॥ १ ॥
बादिसाह साह सभ वसि करि दीने ॥ अंमृत नाम महा रस पीने ॥ २ ॥
निरभउ होइ भजहु भगवान ॥ साधसंगति मिलि कीनो दानु ॥ ३ ॥
सरनि परे प्रभ अंतरजामी ॥ नानक ओट पकरी प्रभ सुआमी ॥ ४ ॥ १०८ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
राखु पिता प्रभ मेरे ॥ मोह निरगुनु सभ गुन तेरे ॥ १ ॥ रहाउ ॥
पंच बिखादी एकु गरीबा राखहु राखनहारे ॥ खेदु करह अरु बहुतु संतावह आइयो सरनि तुहारे ॥ १ ॥
करि करि हार्यो अनिक बहु भाती छोडह कतहूं नाही ॥ एक बात सुनि ताकी ओटा साधसंगि मिटि जाही ॥ २ ॥
करि किरपा संत मिले मोह तिन ते धीरजु पायआ ॥ संती मंतु दीयो मोह निरभउ गुर का सबदु कमायआ ॥ ३ ॥
जीति लए ओइ महा बिखादी सहज सुहेली बानी ॥ कहु नानक मनि भया परगासा पायआ पदु निरबानी ॥ ४ ॥ ४ ॥ १२५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
सरब कल्यान कीए गुरदेव ॥ सेवकु अपनी लाययो सेव ॥ बिघनु न लागै जपि अलख अभेव ॥ १ ॥
धरति पुनीत भई गुन गाए ॥ दुरतु गया हरि नामु ध्याए ॥ १ ॥ रहाउ ॥
सभनी थांयी रव्या आपि ॥ आदि जुगादि जा का वड परतापु ॥ गुर परसादि न होइ संतापु ॥ २ ॥
गुर के चरन लगे मनि मीठे ॥ निरबिघन होइ सभ थांयी वूठे ॥ सभि सुख पाए सतिगुर तूठे ॥ ३ ॥
पारब्रहम प्रभ भए रखवाले ॥ जिथै किथै दीसह नाले ॥ नानक दास खसमि प्रतिपाले ॥ ४ ॥ २ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
चरन कमल प्रभ हिरदै ध्याए ॥ रोग गए सगले सुख पाए ॥ १ ॥
गुरि दुखु काट्या दीनो दानु ॥ सफल जनमु जीवन परवानु ॥ १ ॥ रहाउ ॥
अकथ कथा अंमृत प्रभ बानी ॥ कहु नानक जपि जीवे ग्यानी ॥ २ ॥ २ ॥ २० ॥
बिलावलु महला ५ ॥
सांति पायी गुरि सतिगुरि पूरे ॥ सुख उपजे बाजे अनहद तूरे ॥ १ ॥ रहाउ ॥
ताप पाप संताप बिनासे ॥ हरि सिमरत किलविख सभि नासे ॥ १ ॥
अनदु करहु मिलि सुन्दर नारी ॥ गुरि नानकि मेरी पैज सवारी ॥ २ ॥ ३ ॥ २१ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
सगल अनन्दु किया परमेसरि अपना बिरदु समार्या ॥ साध जना होए किरपाला बिगसे सभि परवार्या ॥ १ ॥
कारजु सतिगुरि आपि सवार्या ॥ वडी आरजा हरि गोबिन्द की सूख मंगल कल्यान बीचार्या ॥ १ ॥ रहाउ ॥
वण त्रिन त्रिभवन हर्या होए सगले जिय साधार्या ॥ मन इछे नानक फल पाए पूरन इछ पुजार्या ॥ २ ॥ ५ ॥ २३ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
रोगु गया प्रभि आपि गवायआ ॥ नीद पई सुख सहज घरु आया ॥ १ ॥ रहाउ ॥
रजि रजि भोजनु खावहु मेरे भायी ॥ अंमृत नामु रिद माह ध्यायी ॥ १ ॥
नानक गुर पूरे सरनायी ॥ जिनि अपने नाम की पैज रखायी ॥ २ ॥ ८ ॥ २६ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ताप संताप सगले गए बिनसे ते रोग ॥ पारब्रहमि तू बखस्या संतन रस भोग ॥ रहाउ ॥
सरब सुखा तेरी मंडली तेरा मनु तनु आरोग ॥ गुन गावहु नित राम के इह अवखद जोग ॥ १ ॥
आइ बसहु घर देस मह इह भले संजोग ॥ नानक प्रभ सुप्रसन्न भए लह गए ब्योग ॥ २ ॥ १० ॥ २८ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बंधन काटे आपि प्रभि होआ किरपाल ॥ दीन दयाल प्रभ पारब्रहम ता की नदरि नेहाल ॥ १ ॥
गुरि पूरै किरपा करी काट्या दुखु रोगु ॥ मनु तनु सीतलु सुखी भया प्रभ ध्यावन जोगु ॥ १ ॥ रहाउ ॥
अउखधु हरि का नामु है जितु रोगु न व्यापै ॥ साधसंगि मनि तनि हितै फिरि दूखु न जापै ॥ २ ॥
हरि हरि हरि हरि जापीऐ अंतरि लिव लायी ॥ किलविख उतरह सुधु होइ साधू सरणायी ॥ ३ ॥
सुनत जपत हरि नाम जसु ता की दूरि बलायी ॥ महा मंत्रु नानकु कथै हरि के गुन गायी ॥ ४ ॥ २३ ॥ ५३ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
हरि हरि हरि आराधीऐ होईऐ आरोग ॥ रामचन्द की लसटिका जिनि मार्या रोगु ॥ १ ॥ रहाउ ॥
गुरु पूरा हरि जापीऐ नित कीचै भोगु ॥ साधसंगति कै वारनै मिल्या संजोगु ॥ १ ॥
जिसु सिमरत सुखु पाईऐ बिनसै ब्योगु ॥ नानक प्रभ सरणागती करन कारन जोगु ॥ २ ॥ ३४ ॥ ६४ ॥
रागु बिलावलु महला ५ दुपदे घरु ५
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
अवरि उपाव सभि त्याग्या दारू नामु लया ॥ ताप पाप सभि मिटे रोग सीतल मनु भया ॥ १ ॥
गुरु पूरा आराध्या सगला दुखु गया ॥ राखनहारै राख्या अपनी करि मया ॥ १ ॥ रहाउ ॥
बाह पकड़ि प्रभि काढ्या कीना अपनया ॥ सिमरि सिमरि मन तन सुखी नानक निरभया ॥ २ ॥ १ ॥ ६५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
रोगु मिटायआ आपि प्रभि उपज्या सुखु सांति ॥ वड परतापु अचरज रूपु हरि कीनी दाति ॥ १ ॥
गुरि गोविन्दि क्रिपा करी राख्या मेरा भायी ॥ हम तिस की सरणागती जो सदा सहायी ॥ १ ॥ रहाउ ॥
बिरथी कदे न होवयी जन की अरदासि ॥ नानक जोरु गोविन्द का पूरन गुणतासि ॥ २ ॥ १३ ॥ ७७ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ताती वाउ न लगयी पारब्रहम सरणायी ॥ चउगिरद हमारै राम कार दुखु लगै न भायी ॥ १ ॥
सतिगुरु पूरा भेट्या जिनि बनत बणायी ॥ राम नामु अउखधु दिया एका लिव लायी ॥ १ ॥ रहाउ ॥
राखि लीए तिनि रखनहारि सभ ब्याधि मिटायी ॥ कहु नानक किरपा भई प्रभ भए सहायी ॥ २ ॥ १५ ॥ ७੯ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
अपने बालक आपि रखिअनु पारब्रहम गुरदेव ॥ सुख सांति सहज आनद भए पूरन भई सेव ॥ १ ॥ रहाउ ॥
भगत जना की बेनती सुनी प्रभि आपि ॥ रोग मिटाय जीवालिअनु जा का वड परतापु ॥ १ ॥
दोख हमारे बखसिअनु अपनी कल धारी ॥ मन बांछत फल दितिअनु नानक बलेहारी ॥ २ ॥ १६ ॥ ८० ॥
बिलावलु महला ५ ॥
तापु लाहआ गुर सिरजनहारि ॥ सतिगुर अपने कउ बलि जायी जिनि पैज रखी सारै संसारि ॥ १ ॥ रहाउ ॥
करु मसतकि धारि बालिकु रखि लीनो ॥ प्रभि अंमृत नामु महा रसु दीनो ॥ १ ॥
दास की लाज रखै मेहरवानु ॥ गुरु नानकु बोलै दरगह परवानु ॥ २ ॥ ६ ॥ ८६ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ताप पाप ते राखे आप ॥ सीतल भए गुर चरनी लागे राम नाम हिरदे मह जाप ॥ १ ॥ रहाउ ॥
करि किरपा हसत प्रभि दीने जगत उधार नव खंड प्रताप ॥ दुख बिनसे सुख अनद प्रवेसा त्रिसन बुझी मन तन सचु ध्राप ॥ १ ॥ अनाथ को नाथु सरनि समरथा सगल स्रिसटि को मायी बापु ॥
भगति वछल भै भंजन सुआमी गुन गावत नानक आलाप ॥ २ ॥ २० ॥ १०६ ॥
सोरठि महला ५ ॥
करि इसनानु सिमरि प्रभु अपना मन तन भए अरोगा ॥ कोटि बिघन लाथे प्रभ सरना प्रगटे भले संजोगा ॥ १ ॥
प्रभ बानी सबदु सुभाख्या ॥ गावहु सुणहु पड़हु नित भायी गुर पूरै तू राख्या ॥ रहाउ ॥
साचा साहबु अमिति वडायी भगति वछल दयाला ॥ संता की पैज रखदा आया आदि बिरदु प्रतिपाला ॥ २ ॥
हरि अंमृत नामु भोजनु नित भुंचहु सरब वेला मुखि पावहु ॥ जरा मरा तापु सभु नाठा गुन गोबिन्द नित गावहु ॥ ३ ॥
सुनी अरदासि सुआमी मेरै सरब कला बनि आई ॥ प्रगट भई सगले जुग अंतरि गुर नानक की वड्यायी ॥ ४ ॥ ११ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सूख मंगल कल्यान सहज धुनि प्रभ के चरन नेहार्या ॥ राखनहारै राख्यो बारिकु सतिगुरि तापु उतार्या ॥ १ ॥
उबरे सतिगुर की सरणायी ॥ जा की सेव न बिरथी जायी ॥ रहाउ ॥
घर मह सूख बाहरि फुनि सूखा प्रभ अपुने भए दयाला ॥ नानक बिघनु न लागै कोऊ मेरा प्रभु होआ किरपाला ॥ २ ॥ १२ ॥ ४० ॥
सोरठि म ५ ॥
गए कलेस रोग सभि नासे प्रभि अपुनै किरपा धारी ॥ आठ पहर आराधहु सुआमी पूरन घाल हमारी ॥ १ ॥
हरि जीउ तू सुख सम्पति रासि ॥ राखि लैहु भायी मेरे कउ प्रभ आगै अरदासि ॥ रहाउ ॥
जो मागउ सोयी सोयी पावउ अपने खसम भरोसा ॥
कहु नानक गुरु पूरा भेट्यो मिट्यो सगल अन्देसा ॥ २ ॥ १४ ॥ ४२ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सिमरि सिमरि गुरु सतिगुरु अपना सगला दूखु मिटायआ ॥ ताप रोग गए गुर बचनी मन इछे फल पायआ ॥ १ ॥
मेरा गुरु पूरा सुखदाता ॥ करन कारन समरथ सुआमी पूरन पुरखु बिधाता ॥ रहाउ ॥
अनन्द बिनोद मंगल गुन गावहु गुर नानक भए दयाला ॥
जै जै कार भए जग भीतरि होआ पारब्रहमु रखवाला ॥ २ ॥ १५ ॥ ४३ ॥
सोरठि महला ५ ॥
दुरतु गवायआ हरि प्रभि आपे सभु संसारु उबार्या ॥ पारब्रहमि प्रभि किरपा धारी अपना बिरदु समार्या ॥ १ ॥
होयी राजे राम की रखवाली ॥ सूख सहज आनद गुन गावहु मनु तनु देह सुखाली ॥ रहाउ ॥
पतित उधारनु सतिगुरु मेरा मोह तिस का भरवासा ॥
बखसि लए सभि सचै साहबि सुनि नानक की अरदासा ॥ २ ॥ १७ ॥ ४५ ॥
सोरठि महला ५ ॥
बखस्या पारब्रहम परमेसरि सगले रोग बिदारे ॥ गुर पूरे की सरनी उबरे कारज सगल सवारे ॥ १ ॥
हरि जनि सिमर्या नाम अधारि ॥ तापु उतार्या सतिगुरि पूरै अपनी किरपा धारि ॥ रहाउ ॥
सदा अनन्द करह मेरे प्यारे हरि गोविदु गुरि राख्या ॥
वडी वड्यायी नानक करते की साचु सबदु सति भाख्या ॥ २ ॥ १८ ॥ ४६ ॥
सोरठि महला ५ ॥
भए क्रिपाल सुआमी मेरे तितु साचै दरबारि ॥ सतिगुरि तापु गवायआ भायी ठांढि पई संसारि ॥ अपने जिय जंत आपे राखे जमह कीयो हटतारि ॥ १ ॥
हरि के चरन रिदै उरि धारि ॥ सदा सदा प्रभु सिमरीऐ भायी दुख किलबिख काटणहारु ॥ १ ॥ रहाउ ॥
तिस की सरनी ऊबरै भायी जिनि रच्या सभु कोइ ॥ करन कारन समरथु सो भायी सचै सची सोइ ॥
नानक प्रभू ध्याईऐ भायी मनु तनु सीतलु होइ ॥ २ ॥ १੯ ॥ ४७ ॥
सोरठि महला ५ ॥
संतहु हरि हरि नामु ध्यायी ॥ सुख सागर प्रभु विसरउ नाही मन चिन्दिअड़ा फलु पायी ॥ १ ॥ रहाउ ॥
सतिगुरि पूरै तापु गवायआ अपनी किरपा धारी ॥ पारब्रहम प्रभ भए दयाला दुखु मिट्या सभ परवारी ॥ १ ॥
सरब निधान मंगल रस रूपा हरि का नामु अधारो ॥ नानक पति राखी परमेसरि उधर्या सभु संसारो ॥ २ ॥ २० ॥ ४८ ॥
सोरठि महला ५ ॥
मेरा सतिगुरु रखवाला होआ ॥ धारि क्रिपा प्रभ हाथ दे राख्या हरि गोविदु नवा निरोआ ॥ १ ॥ रहाउ ॥
तापु गया प्रभि आपि मिटायआ जन की लाज रखायी ॥ साधसंगति ते सभ फल पाए सतिगुर कै बलि जांयी ॥ १ ॥
हलतु पलतु प्रभ दोवै सवारे हमरा गुनु अवगुनु न बीचार्या ॥
अटल बचनु नानक गुर तेरा सफल करु मसतकि धार्या ॥ २ ॥ २१ ॥ ४੯ ॥
सोरठि महला ५ ॥
जिय जंत्र सभि तिस के कीए सोयी संत सहायी ॥ अपुने सेवक की आपे राखै पूरन भई बडायी ॥ १ ॥
पारब्रहमु पूरा मेरै नालि ॥ गुरि पूरै पूरी सभ राखी होए सरब दयाल ॥ १ ॥ रहाउ ॥
अनदिनु नानकु नामु ध्याए जिय प्रान का दाता ॥ अपुने दास कउ कंठि लाय राखै ज्यु बारिक पित माता ॥ २ ॥ २२ ॥ ५० ॥
सोरठि महला ५ ॥
ठाढि पायी करतारे ॥ तापु छोडि गया परवारे ॥ गुरि पूरै है राखी ॥ सरनि सचे की ताकी ॥ १ ॥
परमेसरु आपि होआ रखवाला ॥ सांति सहज सुख खिन मह उपजे मनु होआ सदा सुखाला ॥ रहाउ ॥
हरि हरि नामु दीयो दारू ॥ तिनि सगला रोगु बिदारू ॥ अपनी किरपा धारी ॥ तिनि सगली बात सवारी ॥ २ ॥
प्रभि अपना बिरदु समार्या ॥ हमरा गुनु अवगुनु न बीचार्या ॥ गुर का सबदु भइयो साखी ॥ तिनि सगली लाज राखी ॥ ३ ॥ बोलायआ बोली तेरा ॥ तू साहबु गुनी गहेरा ॥ जपि नानक नामु सचु साखी ॥ अपुने दास की पैज राखी ॥ ४ ॥ ६ ॥ ५६ ॥

FAQs:- Dukh Bhanjani Sahib in Hindi

हमें दुख भंजनी साहिब पाठ कब करना चाहिए?

बैशाखी के दौरान बैशाखा नक्षत्र होता है। इसी दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। इसलिए इसे मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। अधिकतर बैशाखी पर्व पर परिवार के सदस्यों के द्वारा दुःख भंजनी का पाठ किया जाता है। इसके अतिरिक्त आप इसका पाठ सुबह शाम भी कर सकते है।

दुख भंजनी साहिब किसने लिखा था?

इस पाठ को गुरु अर्जन देव के द्वारा लिखा गया था।

Dukh Bhanjani Sahib Path Hindi PDF Download कैसे करें?

इस भजन को Pdf के रूप में निःशुल्क डाउनलोड करने के लिए पोस्ट में दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करें।

Conclusion :- Dukh Bhanjani Sahib Path Hindi PDF

इस पोस्ट में Dukh Bhanjani Sahib Path Hindi PDF फ्री में उपलब्ध करवाई गयी है। उम्मीद करते है की Dukh Bhanjani Sahib PDF डाउनलोड करने में किसी भी प्रकार को समस्या नहीं हुई होगी।

यह पोस्ट आपको अवश्य ही पसंद आयी होगी। यदि आपको Dukh Bhanjani Sahib Path PDF डाउनलोड करने में किसी भी प्रकार की समस्या आ रही हो, तो कमेंट करके जरूर बताये। साथ ही इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें, ताकि वे भी इससे लाभान्वित हो सकें।

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